About The Books
मृदा परिच्छेदिका का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मृदा के लाक्षणिक गुणों तथा गुणवत्ता को प्रकट करता है । मृदा की गहराई अत्यधिक ढलान वाले पहाड़ी पर कुछ सेंटीमीटर होती है तो जलोढ़ निक्षेपों में यह कई मीटर गहरी हो सकती है। यह पुस्तक उनके लिए है, जिनकी रुचि जल के सही उपयोग जैसे सिंचाई एवं मिट्टी की समस्या और मृदा संरचना से सम्बंधित अनुसंधानों जैसे मृदा संरचना : वृद्धि एवं विकास, मिट्टी निर्माण की जैविकीय प्रक्रिया, मृदा अपरदन : समस्या एवं समाधान, भूमि जाँच या मृदा परीक्षण, मृदा की शोषण क्षमता तथा सूक्ष्म कण, मृदा एवं जल सुरक्षा, मृदा एवं वर्षा जल : सुरक्षा एवं आवश्यकता में शामिल है।
About The Author
डॉ. राकेश कुमार सिंह (पीएच.डी) असिस्टेंट प्रोफेसर, कवक रोग विज्ञान विभाग, कृषि विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में वर्तमान समय में कार्यरत हैं। डॉ. सिंह ने अपनी स्नातक की शिक्षा नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, फैजाबाद से पूर्ण की, तदुपरान्त भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से जनियर रिसर्च फेलोशिप प्राप्त कर परास्नातक की शिक्षा कवक रोग विज्ञान विभाग, कृषि विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडल के साथ पूर्ण की। डॉ. सिंह ने पीएच.डी उपरोक्त विश्वविद्यालय से सूत्रकृमी के जैविक नियंत्रण के सन्दर्भ में की। डॉ. सिंह ने पादप रोग विज्ञान एवं प्लांट नेमाटोलोजी के क्षेत्र में खास तौर पर सूत्रकृमियों के जैविक नियंत्रण एवं धान में लगने वाले रोगों के निदान पर शोध एवं प्रसार से सम्बन्धित कार्य किया है। इन्होंने कई स्नातक, परास्नातक, पीएच.डी के छात्रों के मार्गदर्शक के रूप में एवं पादप रोगों से सम्बन्धित ट्रेनिंग एवं महत्वपूर्ण जानकारियां किसानों को देने में भी अपना बहुमूल्य समय दिया है । डॉ. सिंह कई प्रोफेशनल सोसाइटीज के लाइफ मेम्बर हैं। एवं इनके लगभग 40 शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। इन्होंने UGC, UPCAR, ICAR एवं विभिन्न प्राइवेट कम्पनियों द्वारा वित्त पोषित कई शोध परियोजना को संचालित किया है एवं धान के ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम से भी जुड़े हैं।
डॉ. प्रदीप कुमार सिंह वर्तमान समय में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। इनकी नियुक्ति सब्जी विज्ञान विभाग, शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय-कश्मीर शालीमार श्रीनगर में है। इन्होंने अपनी विद्या वाचस्पति की उपाधि सन 2005 में प्राप्त की थी। इन्होंने नेट की परीक्षा 2003 में उतीर्ण की। इनका कुल अनुभव 9 वर्ष से ज्यादा है जिसमें प्रमुख रूप से शोध शिक्षा एवं प्रसार है। इन्होंने अनेक राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया है एवं अनेक लेख एवं आलेख प्रस्तुत किये हैं। इन्होंने अभी तक 12 विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी भाग लिया है, जिससे इनको अनेक प्रकार के अनुभव प्राप्त हुए हैं। इनके राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में अनेक लेख प्रकाशित हुए हैं जिनमें मुख्य रूप से 14 लेख अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में एवं 16 लेख राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। 65 सारांश विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रकाशित हुए हैं। इनकी चार पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं हैं जिसका शीर्षक है मैनुअल ऑन वेजिटेबल ब्रीडिंग,एप्लाइड प्रोडक्शन टेक्नॉलाजी ऑफ वेजीटेबल, वेजीटेबल प्रोडक्शन अंडर किचन गार्डेन एवं बायो टेकनोलोजी फॉर एग्रिकल्चर एंड एनवायरनमेंट प्रमुख हैं। इनके 6 अध्याय विभिन्न पुस्तिकाओं में प्रकाशित हैं। इसके अलावा इनके 28 प्रचलित लेख विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। ये विभिन्न शोध पत्रिकाओं में वार्षिक एवं जीवन पर्यंत सदस्य हैं। वर्तमान में ये अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं के संपादक समिति के सदस्य हैं।
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